गुरु गोरख बाट देखते होंगे सुन्दरादे डेरे में / मेहर सिंह
पुरनमल:- गुरु गोरख बाट देखते होंगे सुन्दरादे डेरे में,
सुन्दरादे:- हो बाबा जी तनै जाने दूंना मन फंसग्या तेरे में।
पु.:- इसी बात बाबा के संग में होणी ना चाहिए,
सु.:- चन्द्रमा सी शान नै व्यर्था खोणी ना चाहिए,
पु.:- अगत जगत में मिलै भलाई इसी रोजी टोहनी चाहिए,
सु.:- ऋत पै केशर क्यारी सै या तनै मेवा बोणी चाहिए,
पु.:- बोवैगा जो काटैगा या श्रद्धा ना मेरे मैं,
सु.:- बाबाजी आग लगै, जब आग लगै चेहरे मैं।1।
पु.:- गुरु गोरख फिकर करेंगे मन में पूरन क्यूं ना आया,
सु.:- आज तलक इसी शक्ल ना देखी हे ईश्वर तेरी माया,
पु.:- पांच भूत पच्चीस भूतनी भिन्न-भिन्न में दर्शाया,
सु.:- ज्ञान की भूखी ना बाबा जी करदे मन का चाया,
पु.:- मैं जाण गया तूं बाबा जी नै देना चाहवै घेरे में,
सु.:- तूं बनड़ा आला ढंग बणा ले जिब लूंगी फेरे में।2।
पु.:- आज गुरु नै ज्यान मेरी कीत फंसा दई रासे में,
सु.:- साधुआं के सिर काट्या करूं तू के लेगा तमाशे में,
पु.:- तेरे केसे जीव जन्तु सौ होकै मरै चमाशे में,
सु.:- या चोपड़ सार बिछा राखी सै खेलूंगी पाशे में,
पु.:- गुरु गोरख तै शरीर सौंप दिया मनै मिलगे थे झेरे में,
सु.:- तेरी गोरख गैल बराती हौं जिब झलक लगै सेहरे में।3।
पु.:- सिद्ध साधा के सिर पै बादली तूं कड़ै गरजती आवै सै,
सु.:- बंश की खातिर दुखिया आगी थारे कोण गृहस्थी आवै सै,
पु.:- धरती ना है बुंद पड़न की तू कड़ै बरसती आवे सै,
सु.:- जिन्दगी भर तेरी टहल करै न्यूं हूर लरजती आवै सै,
पु.:- कहै मेहर सिंह रस ना लिकड़ै सूके हुए पटेरे में,
सु.:- कह लख्मी चन्द राजी हो ज्या जब लिकड़ै चाल बछेरे में।4।