भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गुरु यथार्थ में वही / हनुमानप्रसाद पोद्दार
Kavita Kosh से
(तर्ज लावनी-ताल कहरवा)
गुरु यथार्थ में वही, स्वयं हो जिसको प्रभुका तत्व-ज्ञान।
शम-दम-त्याग-समत्व-प्रेमकी जो हो पावन मूर्ति महान॥
निज आदर्श चरितकी द्युतिसे हरे शिष्यका तम-अज्ञान।
प्रभुकी ओर लगा, जो कर दे सहज समुज्ज्वल-जीवन-दान॥
सेवा करे सदा ऐसे सद्गुरुकी, समझ उसे भगवान।
श्रद्धा-विनय-भक्ति से अनुगत रहे, करे पूजन-समान॥
बना रहे आज्ञाकारी नित कर्म-वचन-मनसे सज्ञान।
गुरुकी सहज कृपासे उसका हो अयुदय, परम कल्यान॥