गुरु / सपन सारन
मेरे अन्दर एक मुस्कुराहट छिपी है
किसी और की
मेरे अन्दर एक ज़िद्द छिपी है
किसी और की…
एक दिन वो बिना बताए घर आ गया
बोरी-बिस्तर समेत
मैंने घर के कमरों में से
उस ‘किसी और’ को — रसोई दे दी
ये सोचकर के कि जितनी कम जगह इसे दूँ
उतने इत्मीनान से खुद जीऊँ ।
पर उसने रसोई में खाना पकाना शुरू कर दिया ।
खाना स्वादिष्ट था —
मैंने भर-पेट खाना शुरू कर दिया ।
एक दिन लोग रोए
कि वो चल बसा
बड़ा आदमी था
उसके कई चाहने वाले थे
मेरा गुरु था —
लेकिन मैं नहीं रोया ।
रसोई में उस रात भी खाना पका
मैंने मृत्युभोज खाया ।
...मेरे अन्दर एक मुस्कुराहट छिपी है
किसी और की
मेरे अन्दर एक ज़िद्द छिपी है
किसी और की ।
ये मुस्कुराहट मुझे रोने नहीं देती
ये ज़िद्द मुझे हारने नहीं देती ।
मेरे अन्दर एक रसोई छिपी है
मेरे गुरु की
ये रसोई मुझे भूखा सोने नहीं देती ।