गुरूर की कहानी/रमा द्विवेदी
इंसान के दिल में गुरूर कितना?
इंसान बन गया है मग़रूर कितना?
चूर-चूर चाहे हो जाए ज़िन्दगी,
झुकता नहीं कभी मजबूर कितना?
इंसान का गुरूर हिमालय विराट-सा,
इंसान का गुरूर समुन्दर में आग-सा,
इंसान के गुरूर से मिट जाती हस्तियाँ,
इंसान का गुरूर सूरज में आग-सा।
गुरूर के साम्राज्य की होती न लंबी आयु,
स्वर्ण लंका जला देती है छोटी सी एक वायु,
गुरूर के साम्राज्य की हस्ती ही मिट गई,
बचा न था कोई दीप,बची थी न कोई बाती।
गुरूर के इतिहास की कहानी बड़ी पुरानी,
गुरूर ने रची थी कुरुक्षेत्र की कहानी,
गुरूर की आग में हर रिश्ता शव बना,
प्यासी ही फिर भी रह गई गुरूर की जवानी।
गुरूर जब घटे थाली में चाँद आये,
गुरूर जब नवे बंशी की धुन सुनाए,
गुरूर जब न हो कण-कण थिरक उठे ,
गुरूर जब मिटे राधा-श्याम बन जाए।