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गुलनार-गुलनार हो गया आसमान / केदारनाथ अग्रवाल
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गुलनार
गुलनार
हो गया आसमान
देखते-देखते इंसान के
चमत्कार
चमत्कार
हो गया जहान
देखते-देखते इंसान के
आलोक
आलोक
हो गया आत्मज्ञान
देखते-देखते इंसान के
संश्लोक
संश्लोक
हो गया हृत्-प्रान
देखते-देखते इंसान के
रचनाकाल: ०७-०९-१९७६, बाँदा