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गुलशन को बहारों ने इस तरह नवाज़ा है / 'साग़र' आज़मी
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गुलशन को बहारों ने इस तरह नवाज़ा है
हर शाख़ के काँधे पर कलियों का जनाज़ा है
किस तरह भुलाएँ हम इस शहर के हंगामे
हर दर्द अभी बाक़ी है हर ज़ख्म अभी ताजा है
मस्ती भी उम्मीदें भी हसरत भी उदासी भी
मुझ को तेरी आँखों ने हर तरह नवाज़ा है
मिट्टी की तरह इक दिन उड़ जाएगा राहों से
सब शोर मचाते हैं जब तक लहू ताज़ा है
ये राख मकानों की ज़ाए न करो ‘साग़र’
ये अहल-ए-सियासत के रूख़्सार का ग़ाज़ा है