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गुलाबी के हिस्से की भूख वाली / मृदुला सिंह

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थोड़ी-सी जमीन कुछ मुर्गियाँ
और कुछ बकरियों की मालकिन है गुलाबी
बेतरतीब छप्पर वाली छानी
से बहते पानी की धार
जमी है उसके सूखे होठों पर
सफेदी लिए

वह बोलती कम है मुस्कुराती ज्यादा है
यह जो ज्यादा है
वही शोर है उसका
कहाँ है विकास?
इधर आने से रोका है किसने
पुरानी धोती की तह में
संजो के रखा है उसने गुलाबी कार्ड
उसे नहीं पता उसके हिस्से की भूख
फाइलों में दर्ज है उसी के नाम से
घर की संगी है स्कूल
और स्कूल की घण्टियाँ भी
वहाँ से आने वाली प्रार्थनाओ के राग पर
दोहरी होती गुलाबी
गेहूँ की बालियों पर
बगरी जाड़ों की पीली धूप है

गांव की कच्ची दीवारों पर
गेरूआ रंग से लिखे हैं
शिक्षा अधिकार के
बहुत क्रांतिकारी नारे
उसकी पोती स्कूल नहीं जाती
लकड़ा की पत्तियाँ औऱ फूल चुनती है
कोठार नही
अपना पेट भरने के लिए

मोबाइल से हमने ली है
उसके जीवन वितान की रंगीन तस्वीरें
तस्वीरों में लकड़ा के फूल
और गुलाबी हो उठे हैं
माहू लगे खेतों का रंग काई हो गया है
उसके आंखों में पीली नदी सोती है
लाख एडिट के बाद भी उभर आईं है
वे एक जोड़ा आंखें
हजार आंखों की शक्ल में
अनगिनत सवाल लिए स्क्रीन पर

हमे लौटना ही है
हम लौट रहे हैं शहर
गाड़ी की रफ्तार में तेजी से पीछे छूट गए गुलाबी के गाँव से
हमने चुनी हैं पीले रंग की हरियाली
जुड़ी रहेगी उसकी याद
हमेशा गर्भ नाल सी
पोषित करती रहेगी
जीवन और जीवन की विडम्बनाओं को