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गुलाबी होठ को अपने जो पैमाना बना डाला / बाबा बैद्यनाथ झा

गुलाबी होठ को अपने जो पैमाना बना डाला
मुझे मदहोश कर तुमने तो दीवाना बना डाला

मिले जब रोज़ ही मुझको तुम्हारे हुस्न का प्याला
नहीं जाऊँ कहीं बाहर ये मयखाना बना डाला

यहाँ पर घूमने आते बराबर ही कई जोड़े
तुम्हीं ने तो यहाँ मौसम को याराना बना डाला

बड़ी वीरान लगती थी यहाँ बगिया उदासी से
तुम्हारी ही हँसी ने आज रुखसाना बना डाला

अभी फिलहाल क्यों तुममें मुझे कुछ बेरुखी दिखती
ख़ता थी क्या भला मेरी जो अफ़साना बना डाला

नहीं कुछ भी सुहाता है जमाने में मुझे 'बाबा'
सरस दिल था बना मेरा, को वीराना बना डालाS