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गुलाबों की तरह दिल अपना शबनम में / बशीर बद्र

गुलाबों की तरह दिल अपना शबनम में भिगोते हैं
मोहब्बत करने वाले ख़ूबसूरत लोग होते हैं

किसी ने जिस तरह अपने सितारों को सजाया है
ग़ज़ल के रेशमी धागों में यों मोती पिरोते हैं

पुराने मौसमों के नामे-नामी मिटते जाते हैं
कहीं पानी कहीं शबनम कहीं आँसू भिगोते हैं

यही अंदाज़ है मेरा समन्दर फ़तह करने का
मेरी कागज़ की कश्ती में कई जुगनू भी होते हैं

सुना है 'बद्र' साहब महफ़िलों की जान होते थे
बहुत दिन से वो पत्थर हैं, न हंसते हैं न रोते हैं