भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गुलाम बेगम बादशाह / घोड़ी पे होके सवार चला है दूल्हा यार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रचनाकार: राजिन्द्र कृष्ण                 

घोड़ी पे हो के सवार चला है दूल्हा यार
कमरिया में बाँधे तलवार
अकड़ता है छैला मिली है ऐसी लैला
कि जोड़ी है नहले पे दहला
घोड़ी पे हो के ...

कल तक बेचारा हम सा कँवारा
फिरता था गली-गली मारा-मारा
देखी एक छोकरी फूलों की टोकरी
बोला दिल थाम के मैं हारा-हारा
यार को मुबारक हो मुहब्बत की बाज़ी
मियाँ बीवी राज़ी तो क्या करेगा काज़ी
सदा फूले-फले दोनों का प्यार
घोड़ी पे हो के ...

दुल्हन की धुन है कैसा मगन है
होगा मिलन देखो अभी-अभी
शादी की मस्ती लगती है सस्ती
पड़ती है महँगी भी कभी-कभी
ये बात मत भूलना प्यार की बहारें
नन्हें-मुन्नों की लगा देंगी क़तारें
तब उतरेगा जा के ख़ुमार
घोड़ी पे हो के ...