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गुलिश्तां उल्लुओं को याद करता है / प्रेम कुमार "सागर"


अकेला होकर भी, जब शाख, वह बर्बाद करता है
न जाने क्योँ गुलिश्तां उल्लुओं को याद करता है |

नफरत कभी बरसा था इस बदहवास चमन में
वीराना एक - एक मंजर यही फ़रियाद करता है |

भ्रमर की जिंदगी जबकि कटी है प्यार में इनके
गुलों का आब क्यूँ काँटों को ही इरशाद करता है |

कभी गुजरा था उन दो-दो नशीली आँख के रस्ते
तभी ‘सागर' नशे का हर वखत शंखनाद करता है ||