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गुलों को चूम के जब से चली हवाएँ हैं / नीरज गोस्वामी
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गुलों को चूम के जब से चली हवाएँ हैं
गयीं, जहाँ भी, वहाँ खुशनुमा फि़ज़ाएँ हैं
भुला के ग़म को चलो आज मिल के रक्स करें
फलक पे झूम रहीं सांवली घटाएँ हैं
सबूत लाख करे पेश बेगुनाही का
शरीफ शख्स को मिलती सदा सज़ाएँ हैं
तड़प हिरास घुटन बेकसी अकेलापन
अगर वो साथ है, तो दूर ये बलाएँ हैं
रकीब हों, के हों कातिल, के कोई अपना हो
हमारे दिल में सभी के लिए दुआएँ हैं
वही जो सुन के, पलट के भी देखता ही नहीं
उसी के वास्ते इस दिल की सब सदाएँ हैं
चला हजूम सदा साथ झूठ के " नीरज "
लिखी नसीब में सच के सदा ख़लाएँ हैं