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गुलोॅ के गुल खिलाना आबी गेलोॅ छै / सियाराम प्रहरी
Kavita Kosh से
गुलोॅ के गुल खिलाना आबी गेलोॅ छै
चमन के चहचहाना आबी गेलोॅ छै
बचाय केॅ के-के अपनोॅ माथ चलतै
उनका पत्थर चलाना आबी गेलोॅ छै
हय त बस तिरछी नजरोॅ के असर छै
नजरोॅ में बसाना आबी गेलोॅ छै
है अंगड़ाई बहुत कुछ कहि रहल छै
समय केहनोॅ सुहाना आबी गेलोॅ छै
अगर डर छै त बस हय बात के छै
हवा के घर जलाना आबी गेलोॅ छै
उनका दीपक जलाना आबी गेलोॅ छै
त हमरोॅ पर जलाना आबी गेलोॅ छै।