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गुल्लक में जमा प्रतिरोध / मृदुला सिंह

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मां!
साल भर की बच्ची को छोड़
चल दी तुम वहाँ
जहाँ से कोई नहीं लौटता
न आता कोई संदेश
कोई तस्वीर भी नहीं तुम्हारी
हाँ, आइना जरूर कहता है
कि मैं तुमसा ही दिखती हूँ

फूफी कहती थी
तुम तारा बन गई हो
पर वह झूठ कहती थी
तुम एक कहानी बन गई
वह कहानी
जो कभी लिखी ही नहीं गई

तुम्हारी कहानियाँ
सुनाती है बखरी की ऊंची भीत
तुम धरती भर धीरज थी
सहती थी आकाश भर दुःख
उड़ेलती आँचल भर-भर मया
अपने दुखदाता को भी

पुराने संदूक में
मिली थी तुम्हारी एक चिट्ठी
पीले पोस्टकार्ड में लिखा था
तुमने जीजी के नाम
'जो तोको कांटा बोवे ताको तू बो फूल'
यह नहीं लिखा गया तुमसे
'तोको हैं फूल वाको हैं शूल'

तुम लिख भी नहीं सकती थी
कैसे लिखती कठोर सीखें
महान कुलीन नारी धर्म का
पाठ पढ़ाया था तुम्हारे समय ने
न्याय अन्याय में फर्क करना
मरजाद की तौहीन थी

मां!
तुम्हारी कहानी सुनते बड़ी हुई हूँ
पैसा-पैसा जोड़ा है प्रतिरोध
समय के गुल्लक में
फोडूंगी इक दिन जरूर
बहुरूपिये समाज के माथे पर
और बांट दूंगी तमाम बेटियों को
बनेंगे उनके हाथ आजाद और मजबूत
वह खोज लेंगे जरूर
अपने खिलाफ उठने वाले
हर उन तमाम हाथों को
जो दस्ताने में छुप कर करते हैं वार
तब होगा उन सब स्त्रियों का तर्पण
जो मारी गई है अकाल मौत
तुम देखना!
बारिश होगी उस दिन खुल कर
और लहलहा उठेगी
तुम्हारे हिस्से की बंजर जमीन