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गुल्लक / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

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दादाजी मैंने जोड़े,
गुल्लक में पैसे
पॉकेट ख़र्च मुझे पापा,
हर दिन देते हैं।

कुछ पैसे बचते हम,
उसमें रख लेते हैं।
पूरी गुल्लक महीने छ,
में भरी हमारी।

उसे तोड़ने की दादा,
जी है तैयारी।
आज देखना नोट भरे,
उसमें हैं कैसे।
दादाजी मैंने जोड़े,
गुल्लक में पैसे।

अम्मू ने तो खा डाले,
अपने सब पैसे।

खर्च किए मनमाने ढंग,
से जैसे-तैसे।
खाई चाट पकौड़ी,
खाए आलू छोले।
खाई बरफी ख़ूब चले,
लड्डू के गोले।

गप-गप खाए वहीं जहाँ,
पर दिखे समोसे।
दादाजी मैंने जोड़े,
गुल्लक में पैसे।

इन पैसों से दादी को,
साड़ी लाऊंगी।
जूते फटे तुम्हारे हैं,
नए दिलाऊंगी।
चश्मे की डंडी टूटी,
है अरे आपकी।

दादाजी दिलवाऊंगी,
मैं उसी नाप की।
आप हमारे छत्र सदा,
से रक्षक जैसे।
दादाजी मैंने जोड़े,
गुल्लक में पैसे।