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गुल रंग मिस्ल ए लाला / रिंकी सिंह 'साहिबा'

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गुल रंग मिस्ल ए लाला ,रुतबे में सबसे आला ,महबूब वो मेरा है,
मैं क्यों ना जाँ लुटाऊं ,हरदम उसे सताऊं, ये दिल का सिलसिला है।

है रक्स में समंदर, धुंधला है लाख मंज़र मझधार में घिरे हैं,
तूफ़ां उछाल देंगे,कश्ती निकाल लेंगे, कुछ ऐसा हौसला है।

उसकी वफ़ा की अज़मत पर दो जहान वारें, ये कायनात हारें
ये चाँद ये सितारे पहलू में हैं हमारे, उल्फ़त का मर्तबा है।

जो कूज़ा गर निराला ज़र्रे में है दरख्शां तू उसको भूल बैठा,
बेवक़्त जो क़ज़ा है, हर सिम्त जो वबा है, सब उसका ज़लज़ला है।

दिल के चराग़ में अब लौ इश्क़ की लगाओ, तुम फिर से मुस्कुराओ,
दौर ए खिजां की ज़द में वो फूल भी खिला है, जिसमे कि हौसला है।

था जब उदास मंज़र , दरिया हुआ था बंजर, खुशियां भी थी अधूरी,
हर सिम्त मुस्कुराया ,मेरा ही एक साया, वो जान ए जाँ मेरा है।

तू इश्क़ का जहां है, तुझसे ही ज़िंदगी है, तुझसे ही हर ख़ुशी है,
मेरे हबीब आओ, इन धड़कनों पे छाओ, दिल की यही सदा है।

तू वुसअतों में ढलता, तू अज़मतों में पलता, तू रूह है ग़ज़ल की,
इक रंग ख़ुशनुमा है , इक ढंग दिलरुबा है, तू यार प्यार सा है।

वो इंतिख़ाब ए दिल है , वो रूह की तलब है, वो काबिल ए अदब है,
वो इश्क़ ए जाविदां है, जिसमे ख़ुदा निहां है, सजदे में 'साहिबा' है।