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गुस्ताख़ दिल किसी न किसी को सताएगा / कैलाश झा 'किंकर'

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गुस्ताख़ दिल किसी न किसी को सताएगा
हर वक़्त बेवजह ही तमाशा लगाएगा।

कहने को साथ देगा मगर, आपकी तरह
ग़म में कभी भी आ के नहीं वह हँसाएगा।

पानी का बुलबुला है तुम्हारी ये दोस्ती
तेरे मकान में न कभी कोई आएगा।

पढ़ने की उम्र में ही हुआ इश्क़ हुस्न से
यह इश्क़ ज़िन्दगी को कभी काट खाएगा।

डरने की बात है न डराने की बात यह
फिर भी तुम्हारा प्रेम सभी को डराएगा।

विश्वास टूटते ही बिखरती है ज़िन्दगी
'किंकर' भी तुमसे दूर बहुत दूर जाएगा।