भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गुस्ताख़ दिल किसी न किसी को सताएगा / कैलाश झा 'किंकर'
Kavita Kosh से
गुस्ताख़ दिल किसी न किसी को सताएगा
हर वक़्त बेवजह ही तमाशा लगाएगा।
कहने को साथ देगा मगर, आपकी तरह
ग़म में कभी भी आ के नहीं वह हँसाएगा।
पानी का बुलबुला है तुम्हारी ये दोस्ती
तेरे मकान में न कभी कोई आएगा।
पढ़ने की उम्र में ही हुआ इश्क़ हुस्न से
यह इश्क़ ज़िन्दगी को कभी काट खाएगा।
डरने की बात है न डराने की बात यह
फिर भी तुम्हारा प्रेम सभी को डराएगा।
विश्वास टूटते ही बिखरती है ज़िन्दगी
'किंकर' भी तुमसे दूर बहुत दूर जाएगा।