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गुस्सावर चेहरा / प्रभात कुमार सिन्हा
Kavita Kosh से
बारिश की बौछारें धकियाती हुई आयी हैं
टीन की उपरछत्ती को डुग्गी की तरह पीटती ये बौछारें
चूल्हे तक पहुंच गयी हैं
कौन है जो इस विषम मौसम में
हमारे पेट तक को डेंगा रहा है बारिश के बहाने
चोट करना और पिटना अर्वाचीन है
पर आज मिजाज ऐसा बना है कि
दुष्टों के चेहरे पर पड़े पर्दे को चिथड़ा कर देना है
कुछ देर धुवांने के बाद
सुलग उठेंगी भीगी जलौनी लकड़ियाँ
बस लुक्का सुलगाकर घेर लेना है उन सभागारों को
जहाँ तैयार होते हैं हमारे पेट को
पीटने के नुस्खे
ऐसे में तप उठेंगे दिन
बादलों की ओट से झाँक उट्ठेगा
सूरज का गुस्सावर चेहरा।