गूँगे का बयान था
या तीरो-कमान था
फरयाद सुनकर हुआ
हाकिम बेजुबान था 
घर छोड़कर चला जो 
उसे मिला जहान था
ख़्वाबों में था इक घर
मुकद्दर में मकान था 
खेत बिका होरी का
शेष मगर लगान था
गोदाम सब थे भरे 
भूखा बस किसान था
धरती थी प्रदूषित
मैला आसमान था
मिल गया ज़हर मुझे
मुकद्दर मेहरबान था