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गूँज / उमा अर्पिता
Kavita Kosh से
खुलने लगेगा जब
अँधेरे के जिस्म का पोर-पोर
चटक उठेगी दर्द की हर कली,
तब सूनी आँखों में उतर आएगा
यादों का सैलाब
और दूर तक गूँजती चली जाएगी
मेरे अंतकरण की टीस...
शायद कोई गूँज तुम्हें
मेरे दर्द का अहसास दिला
मुझ तक ले आए!