भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गूंज / परवीन शाकिर
Kavita Kosh से
ऊँचे पहाड़ों में गुल होती पगडंडियों पर
खड़ा हुआ नन्हा चरवाहा
बकरी के बच्चे को फिसलते देख के
कुछ इस तरह हँसा है
वादी की हर दर्ज़ से झरने फूट रहे हैं