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गेंदे के फूल / एकांत श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
इतनी रात गये
जाग रहे हैं गेंदे के फूल
मुंह किये आकाश की ओर
अंधकार
एक कमीज की तरह टंगा है
रात की खूंटी पर
एक बूढ़े आदमी की तरह
खांसता है थका हुआ गांव
और करवट बदलकर
हो जाता है चुप
चुप खड़े हैं
नींद में डूबे से
आम नीम बरगद
और जाग रहे हैं गेंदे के फूल
धरती की सजल आंखों की तरह
सपनों की खुशबू से लबालब
कल
इन्हें पुकारेंगे
पक्षियों के व्याकुल कंठ
कल
इन्हें छुएंगे
भोर के गुलाबी होंठ.