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गेंद गिरी! / रमेश तैलंग
Kavita Kosh से
अरे बाप रे! फिर आंटी के
घर में जाकर गेंद गिरी,
बहुत बचाया लेकिन फिर भी टप्पे खाकर गेंद गिरी!
अब आंटी के ग़ुस्से से
भगवान! बचाना हम सबको,
काम कठिन है, फिर भी कोई
राह सुझाना हम सबको।
ग़लती अपनी है, पर बल्ले से टकराकर गेंद गिरी!
बहुत बचाया लेकिन फिर भी टप्पे खाकर गेंद गिरी!
हमें पता है माफ़ी की अब
चाल नहीं चलने वाली,
और आंटी के आगे अपनी
दाल नहीं गलने वाली।
पहले भी तो कई बहाने बना-बनाकर गेंद गिरी!
बहुत बचाया लेकिन फिर भी टप्पे खाकर गेंद गिरी!
कैसा भी हो ग़ुस्सा उनका
पर अब तो सहना होगा,
'गेंद 'फैन' है बड़ी आपकी'
आंटी से कहना होगा।
फैन नहीं होती तो कैसे यूँ जा-जाकर गेंद गिरी |
बहुत बचाया लेकिन फिर भी टप्पे खाकर गेंद गिरी!