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गेम / देवी प्रसाद मिश्र
Kavita Kosh से
मेरे बहुत बग़ल से गोलियाँ चलने की आवाज़ें
आ रही थीं तो मैं ने देखा कि एक आदमी
वीडियो गेम चलाए हुए था और उसका चेहरा
भिंचा हुआ था, जिसमें मारने की क्रूरता थी
और जब उसने मुझे अपनी तरफ़ देखते हुए
देखा तो उसके चेहरे की हिंसा अधिक प्रगाढ़
हो गई और मैंने डर महसूस किया लेकिन
वह डर बहुत देर तक मेरे साथ नहीं रहा
बल्कि मेरे मन में यह आया कि उससे कहूँ
कि क्या उसके पास मनुष्य को बचाने का
वीडियो गेम भी है ।