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गे माइ अरही बन सँ खरही कटाओल / मैथिली लोकगीत

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मैथिली लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

गे माइ अरही बन सँ खरही कटाओल
वृन्दावन बिट बाँस
गे माई ताहि बाँस के बंगला छड़ाओल
झिहिर झिहिर बहय बसात
गे माइ ताहि पैसि सुतला भइया से फलां भइया
आबि गेल आलसक नीन
गे माइ उठबय गेलथिन बहिनो से फलां बहिनो
उठू भइया भए गेल परात
गे माइ एहन दोचारिनि ननदि कतहु नहि देखल
आधे राति कहय परात