बुन्देली लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
गैल चलत इक दमरी पाई इक दमरी पाई
दमरी कौ तेल मँगायौ मेरे लाल।
अस्सी मन के बरला पै लये सोला मन की पपरिया मेरे लाल।
बारी ननदिया के ब्याह रचे हैं जज्ञ रचे हैं।
औ देवर कौ गौनो मोरे लाल कि हाँ।
गैल चलत इक दमरी पाई इक दमरी पाई
दमरी कौ तेल मँगायौ मेरे लाल।
अस्सी मन के बरला पै लये सोला मन की पपरिया मेरे लाल।
बारी ननदिया के ब्याह रचे हैं जज्ञ रचे हैं।
औ देवर कौ गौनो मोरे लाल कि हाँ।