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गोंद / अरुण देव
Kavita Kosh से
सबसे अधिक आती है उसकी याद
जब चिट्ठी पर चिपक न रहें हों डाक-टिकट
किसी अर्जी से बार-बार गिर जा रहा हो अपना ही चेहरा
संदेश को पहुंचना हो अपने घर बिना मुहं खोले
फिर तो चिट्टी दिखती है
डाक टिकट दिखता है
चेहरा और संदेश
गोंद नहीं दिखता
अपनी गुरुता में डूबा
अपने गाढ़ेपन में गंभीर
गोंद तो पिन भी नहीं है कि कभी चुभ जाए
कुछ चीजें इसी तरह अदृश्य रहकर
अपना काम करती हैं.