भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गोखुला में बाजले बधइया तो अउरो बधइया बाजे हे / मगही
Kavita Kosh से
मगही लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
बधैया
गोखुला में बाजले बधइया<ref>खुशी के समय बजलने वाली नौबत, शहनाई</ref> तो अउरो बधइया बाजे हे।
ललना, जलमल सीरी<ref>श्री</ref> नंदलाल, नंद घर सोहर हे॥1॥
सोने के हँसुआ बनायम,<ref>बनाऊँगी</ref> गोपाल नार<ref>सद्योजात शिशु का नाल</ref> छीलम<ref>छीलूँगी, काटूँगी</ref> हे।
ललना सोने के चौकिया<ref>चौकी</ref> बनायम, किसुन नेहलायम<ref>स्नान कराऊँगी</ref> हे॥2॥
पीयरे<ref>पीले</ref> बस्तर<ref>वस्त्र</ref> अंग पोछम, पीतामर पहेरायम<ref>पहनाऊँगी</ref> हे।
पइरबा<ref>पैर चरण</ref> में पइजनी पहरायम, गोपाल के नेहलायम हे॥3॥
शब्दार्थ
<references/>