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गोठ ये बेद-पुरान के / पीसी लाल यादव
Kavita Kosh से
होथे जिहाँ सदा संगी, सनमान ह सियान के।
उहें बरसथे बिन माँगे, किरपा ह भगवान के॥
बर बरोबर बुढ़वा ददा
पीपर बरोबर बुढ़ी दाई।
झांझ-झकोरा ले बचावय
हरय दुख-विपत कर लाई।
जिनगी में अंजोरी बर, धरो गोठ गियान के।
उहें बरसथे बिन माँगे, किरपा ह भगवान के॥
जिनगी के आवा म तप के
अनुभव के भंडार भरे हे।
कोन बेरा का उदीम चाही?
सुख-सम्मत आधार धरे हे॥
कइसे करना चाही परछो? बइरी अउ मितान के।
उहें बरसथे बिन माँगे, किरपा ह भगवान के॥
सियान-सामरत ल मान दव
जिनगी ल तुम सनमान दव।
हितु-पिरितु दाई-ददा सबे
अपन-बिरान बर धियान दव॥
बिना सियान धियान नहीं, गोठ ये बेद-पुरान के।
उहें बरसथे बिन माँगे, किरपा ह भगवान के॥