गोड़ोॅ के छाप / गुरेश मोहन घोष
कहीं कहीं फूल चलोॅ कहीं कहीं हाफ-
रोजे तेॅ रेलोॅ मंे हाफौ के बाप।
दुनियाँ है गोल छै, पैसे के मोल छै?
पैसा छौं जेबी में? रक्खोॅ चुप-चाप।
गद्दी के ढोल छै, कुर्सी में बोल छै,
रूप रंग छोड़ी केॅ करोॅ नै जाप।
झूठ झूठ वादा-बैठोॅ तों धाम-
खिल्ली में खसखस दिल्ली में पान-
एक जूट मुँहैं में, फूट खचाखच-
साँच-साँच कहनें जा, झूठै में सच,
मानस के पाठ करी तुलसी के जाप,
पापै केॅ पुन्न कहोॅ पुन्है केॅ पाप?
देहोॅ के नाप नै घोड़ा के टाप,
चढ़ेॅ के पारतै बाप रे बाप!
जेना आसमानोॅ में ईदोॅ के चान छै,
तोरा दरसन्नोॅ लेॅ दुनियाँ हैरान छै!
आबी जा हुप मिनी, चल्लो जा छुप सिमी,
देखतै भागिहोॅ धाप-धाप-धाप।
कहनें जा कुछ तों करिहोॅ कुछ,
भागिहोॅ दुनियाँ पकड़ेॅ पूछ।
बानिहोॅ, मुट्ठी सभ्भे कुछ,
खोलिहोॅ जैन्हैं, छुच्छे छूछछ।
माँगथौं कुछ तेॅ मारिहोॅ थाप-
माय छौं अन्हरी बौरोॅ बाप।
तोरा तॅ सानोॅ के बड़का ठो आन,
तोरा ईमानोॅ पर आँख आरो कान।
तोरा बोखार छौं-हम्में थर्रांय छी,
दिन तोरोॅ भागथौं, रात आपे-आप,
टिम-टिम डिबिया झाँप-झाँप-झाँप।
तौहीं तेॅ देब आरो तोहीं तेॅ पित्तर,
तौंही छोॅ बाहर तोंही तेॅ भित्तर।
गीतोॅ में गानोॅ में तोंहीं महान छोॅ,
सौंसे जहानोॅ मंे तोंहीं जहान छोॅ।
खोजौं अन्हारोॅ में-पछिया बयारोॅ में,
नदिया कछारोॅ में, गोड़ै के छाप।
कहीं कहीं फूल चलोॅ कहीं कहीं हाफ।