भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गोदी के अंदर भगत राम राम रह्या टेर / हरियाणवी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गोदी के अंदर भगत राम राम रह्या टेर
जब से चरचा सुणी थी हर की राम नाम की लगी लगन
समझाया था एक न मानी दरसन की थी लगी लगन
हरिणाकस नै नांय सुहाया क्रोध की अग्नि लगी जलन
निर्भय हो कै भजा भगत ने भै की भूतणी लगी भगन
होलकां ले गोदी में बैठी फूँक जलाद्यूँ ढेर
गोदी के अन्दर भगत राम राम रह्या टेर
होलकां का एक सील वस्तर था लोम रिसी से पाया था
जिस में अगनी परवेस हुवै न यो ही कथा में गाया था
पहिले भी या सती हुई थी यो ए ओढ़ सुख छाया था
अब कै बैर कर्या हर सेत्ती नहीं हुया मन चाहा था
सील वस्तर के अन्दर बड़ कै लागी थी वे करण अंधेर
गोदी के अन्दर भगत राम राम रह्या टेर
चौगरदे कै चिता चिणा के जिस के बीच में दई अगन
जद वा अगन जारी हुई थी चन्दन लकड़ी लगी जलन
चौगरदे के असर फिरैं थे जिनक े हाथ में खड्ग नगन
जगहां नहीं थी कहीं निकलण नै असर रहे थे घेर
गोदी के अन्दर भगत राम राम रह्या टेर
मुलतान सहर के सब सजनां नै अगनी में माला गेर दई
दीनानाथ बचा लड़के नै या सन्तों ने टेर दई
तेरा नाम छिपजा दुनिया में हमने भतेरी फेर लई
जै लड़का जल जाय अगन में इन असरां की जीत हुई
जै भगत जल जा अगनी में के कर ल्येगा फेर
गोदी के अन्दर भगत राम राम रह्या टेर
ऐसी पवन चली जोर की चिता तो पाड़ बगाय दई
सील वस्तर को उथल पुथल के लड़के पै उठाय दई
दगा किसी का सगा नहीं सै समझैगा को सिहणी का सेर
गोदी के अन्दर भगत राम राम रह्या टेर