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गोद लिए हरि कौं नँदरानी / सूरदास

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राग आसावरी

गोद लिए हरि कौं नँदरानी, अस्तन पान करावति है ।
बार-बार रोहिनि कौ कहि-कहि, पलिका अजिर मँगावति है ॥
प्रात समय रबि-किरनि कोंवरी, सो कहि, सुतहिं बतावति है ।
आउ घाम मेरे लाल कैं आँगन, बाल-केलि कौं गावति है ॥
रुचिर सेज लै गइ मोहन कौं, भुजा उछंग सोवावति है ।
सूरदास प्रभु सोए कन्हैया, हलरावति-मल्हरावति है ॥


भावार्थ :--श्रीहरि को गोद में लेकर नन्दरानी यशोदा जी स्तनपान करा रही हैं तथा बार-बार श्रीरोहिणी जी से कह-कहकर खटुलिया (शिशु के छोटे पलंग) को आँगन में मँगाती हैं ।`ये प्रातःकालीन सूर्य की कोमल किरणें हैं, इस प्रकार कहकर पुत्र को बतलाती (सूर्यदर्शन कराती) हैं । `किरणो ! मेरे घर में मेरे लाल के आँगन में आओ।' (बार-बार) बाललीला का गान करती हैं । सुन्दर शय्या पर मोहन को ले जाकर अपनी भुजा पर उनका सिर रखकर गोद में शयन कराती हैं । सूरदास जी कहते हैं--मेरे प्रभु कन्हाई जब सो गये, तब उन्हें झुलाती तथा थपकी देकर प्यार करती हैं ।