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गोधूलि / प्रेमरंजन अनिमेष
Kavita Kosh से
जीवन का ताप
उतर आया है माँ की तलहथियों में
उनमें उठती है लहर
यह तबसे है जबसे
मैं हूँ
उसके पाँवों में लगा रहता है पानी
यह तो तभी से है जबसे वह
जोड़ों में उसके लगती है
हर मौसम हवा
जबसे बहू-बेटे नहीं साथ
ख़ाली-ख़ाली आकाश रहता है
माँ की आँखों में
मायके में
नहीं रही
उसकी माँ
'चलो चलें
मैं ले चलूँगा तुम्हें अपनी पीठ पर...'
पर जाने को तैयार नहीं वह
अपनी मिट्टी से परे
उठकर चलती है तो
मिट्टी झरती है
माँ की देह से...