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गोधूली अब दीप जगा ले / महादेवी वर्मा

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गोधूली इब दीप जगा ले!
नीलम की निस्मीम पटी पर,
तारों के बिखरे सित अक्षर,
तम आता हे पाती में,
प्रिय का आमन्त्र स्नेह-पगा ले!
कुमकुम से सीमान्त सजीला,
केशर का आलेपन पीला,
किरणों की अंजन-रेखा
फीके नयनों में आज लगा ले!
इसमें भू के राग घुले हैं,
मूक गगन के अश्रु घुले है,
रज के रंगों में अपना तू
झीना सुरभि-दुकूल रँगा ले!
अब असीम में पंख रुक चले,
अब सीमा में चरण थक चले,
तू निश्वास भेज इनके हित
दिन का अन्तिम हास मँगा ले!
किरण-नाल पर घन के शतदल,
कलरव-लहर विहग बुद्-बुद् चल,
क्षितिज-सिन्धु को चली चपल
आभा-सरि अपना उर उमगा ले!
कण-कण दीपक तृण-तृण बाती,
हँस चितवन का स्नेह पिलाती,
पल-पल की झिलमिल लौ में
सपनों के अंकुर आज उगा ले!
गोधूली, अब दीप जगा ले!