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गोपाल क्रीड़ा / शब्द प्रकाश / धरनीदास
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मनि एक जोरे जोरे बोलत हलिहुँ हमे, गँवहि, गोवार-पूत हार तोरि लेलही।
वात से कहति जे सुनेते गात तात होत, डीठ के देखत ढीठ चूरि फोर देलही।
एखने केना कही अजियहिँ कँदाइ आव, किन अपराध-लाय हाल मोरि केलही।
भेलि जौनि जौनि काल धरलिन देखत हाल, सारि खूँट फारिके केतारी-आरि गेलही॥18॥