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गोपिका मैं / ऋषभ देव शर्मा
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देखो !
मैं आज भी
उसी तरह
तुम्हारी तलाश में
इस पीपल से
उस बरगद तक
दौड़ दौड़ जाती हूँ
कभी भी किसी भी
घोड़े की टाप सुनते ही !
धूल चाटते आँचल की
परवाह किए बिना,
गोबर में सने
हाथ लिए
बीच राह में
आ खड़ी होती हूँ
बिटौडे पर काग के
बोलते ही !