गोपी बिरह(राग बिलावल)
बिछुरत श्रीब्रजराज आजु,
इन नयनन की परतीति गई।
उड़ि न लगे हरि संग सहज तजि,
ह्वै न गए सखि स्याममई।1।
रूप रसिक लालची कहावत,
सो करनी कछु तौ न भई।
साचेहूँ कूर कुटिल सित मेचक,
बृथा मीन छबि छीन लई।2।
अब काहें सोचत मोचत जल,
समय गएँ चित सूल नई।
तुलसिदास जड़ भए आपहि तें,
जब पलकनि हठि दगा दई।3।