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गोबर में घी ढारै छै / मनीष कुमार गुंज

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हरा गाछ हरियाली लानै
जीवन में खुशीयाली लानै
गाछ-विरीछ के काटी-छांटी
जे चुल्हीं में जारै छै
उ गोबर में घी ढारै छै।

चाहे केतनोॅ विद्वान रहे
तुलसी, कबीर, रसखान रहे
पर बात-बात में गुरू-जन के
जे आगू में बाना झारै छै
उ गोबर में घी ढारै छै।

माय-बाप के जोर कहाँ छै
हुनको आँखी लोर कहाँ छै
गोदी से मोदी तक बनलै
जे मुक्का-घुस्सा मारै छै
उ गोबर में घी ढारै छै।

औरत के मूरख जे समझै
कौवा, गीध वनी के लूझै
डायन बताबै, भूत बनाबै
औरत के यमदूत बनाबै
मरद भीड़ में चौबटिया पर
बेसर्मी से झारै छै
उ गोबर में घी ढारै छै।