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गोबर से लिपलूँ अँगना, हरबोबिन लाल / मगही
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मगही लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
गोबर से लिपलूँ<ref>लिपा-पुता</ref> अँगना, हरबोबिन लाल।
बिछवा<ref>बिच्छू</ref> रेंगल<ref>रेंगता हुआ</ref> जाय हे, हरगोबिन लाल॥1॥
ओने से<ref>उधर से</ref> अयलन दुलरइतिन छिनरो हे, हरगोबिन लाल।
काट लेलक<ref>लिया</ref> छिनरो के बिछवा हे, हरगोबिन लाल॥2॥
कउन बइदा<ref>वैद्य</ref> के बोलाऊँ हे, हरगोबिन लाल।
कउन ओझा के गुनाऊँ हे, हरगोबिन लाल॥3॥
ओने से अयलन कवन रसिया हे, हरगोबिन लाल।
जरा एक<ref>थोड़ा-सा</ref> जगहा<ref>जगह</ref> देखाऊँ हे, हरगोबिन लाल॥4॥
इसे के जगहा देखाऊँ हे, हरगोबिन लाल।
लहँगा में बिछवा समायल<ref>घुस गया</ref> हे, हरगोबिन लाल॥5॥
शब्दार्थ
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