भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गोरी कठिन होत है कारे / ईसुरी
Kavita Kosh से
बुन्देली लोकगीत ♦ रचनाकार: ईसुरी
गोरी कठिन होत है कारे,
भरे हैं मद मतवारे।
कारे रंग के काट खात जब
जिहर न जात उतारे।
काम के बान कामनिन खाँ भये,
कारे नन्द दुलारे।
पटियँन जात उनारे।
ककरेजी खौं पैर ‘ईसुरी’,
खकल करेजे डारे।