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गोरी गावे कजरी / जगदीश पीयूष
Kavita Kosh से
गोरी गावे कजरी।
घिरि आई बदरी॥
गावे ग्वाल बाल कनवा उटेर बिरहा।
चुवे बुढ़ऊ क घर गिरि जाय मड़हा॥
घूम घूम बदरा।
झूम झूम बदरा॥
गिरै पनिया पनारा होइ जाय गड़हा।
चुवे बुढ़ऊ क घर गिरि जाय मड़हा॥
धार धार बदरा।
जइसे गिरै मुसरा॥
भरे खेतवा कियारी उतिराय बरहा।
चुवे बुढ़ऊ क घर गिरि जाय मड़हा॥