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गोरैया / नवीन ठाकुर ‘संधि’
Kavita Kosh से
घरोॅ में तोरोॅ घोरॅ चिरैया,
सब्भै कहै छोॅ तोरा गोरैया।
कखनूँ बैठे छौं ठाठोॅ पेॅ,
कखनूँ बैठे छौं काठोॅ पेॅ।
कखनूँ बैठे छौं लाठोॅ पेॅ,
कखनूँ बैठे छौं रास्ता बाटोॅ पेॅ।
कहियोॅ नै तोरोॅ कोय धोरैया,
तोरा तेॅ कुछूँ नै काम करना,
तैयोॅ तेॅ खाय छोॅ पेट भर दाना।
यहेॅ रोॅ छौं तोरा जिनगी गमाना,
तोरोॅ मनोॅ रोॅ तोही खिलौना।
कथी लेॅ कोय पैतौं तोरोॅ हमसाया,
नोॅर मेदिन दुयेॅ रंगोॅ रोॅ,
कोये नै आरो तोरोॅ ढ़ंगोॅ रोॅ।
जुठोॅ सखरी सें पेट भरी, नै करै छोॅ तंग,
तोरा कहै छै लक्ष्मी यानी शुभ अंग।
कोय नै मानेॅ "संधि" तोरा पराया॥