भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गो-गण सँभाले नहीं जाते मतवाले नाथ / माखनलाल चतुर्वेदी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गो-गण सँभाले नहीं जाते मतवाले नाथ,
दुपहर आई वर-छाँह में बिठाओ नेक।
वासना-विहंग बृज-वासियों के खेत चुगे,
तालियाँ बजाओ आओ मिल के उड़ाओ नेक।
दम्भ-दानवों ने कर-कर कूट टोने यह,
गोकुल उजाड़ा है, गुपाल जू बसाओ नेक।
मन कालीमर्दन हो, मुदित गुवर्धन हो,
दर्द भरे उर-मधुपुर में समाओ नेक।