भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गो-वध बंद करो / कोदूराम दलित

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गो-वध बंद करो जल्दी अब, गो-वध बंद करो,
भाई ! इस स्वतंत्र भारत में, गो-वध बंद करो ।

महापुरुष उस बाल कृष्ण का, याद करो तुम गोचारण
नाम पड़ा गोपाल कृष्ण का, याद करो तुम किस कारण
माखन-चोर उसे कहते हो, याद करो तुम किस कारण
जग-सिर-मौर उसे कहते हो, याद करो तुम किस कारण ।

मान रहे हो देव तुल्य, उससे तो तनिक डरो,
गो-वध बंद करो जल्दी अब, गो-वध बंद करो ।

समझाया ऋषि दयानंद ने, गो-वध भारी पातक है
समझाया बापू ने गो-वध, राम राज्य का घातक है
सब जीवों को स्वतंत्रता से, जीने का पूरा हक है
नर-पिशाच अब उनकी निर्मम हत्या करते नाहक है ।

सत्य-अहिंसा का अब तो, जन-जन में भाव भरो,
गो-वध बंद करो जल्दी अब, गो-वध बंद करो ।

जिस माता के बैलों द्वारा, अन्न-वस्त्र तुम पाते हो
जिसके दही-दूध-मक्खन से, बलशाली बन जाते हो
जिसके बल पर रंगरलियाँ करते हो, मौज़ उड़ाते हो
अरे ! उसी माता की गर्दन पर तुम छुरी चलाते हो ।

गो-हत्यारों ! चुल्लू भर पानी में तुम डूब मरो,
गो-वध बंद करो जल्दी अब, गो-वध बंद करो ।

बहती थी जिस पुण्य भूमि पर, दही-दूध की सरितायें
आज वहीं निधड़क कटती है, दीन-हीन लाखों गायें
कटता है कठोर दिल भी, सुन उनकी दर्द भरी आहें
आज हमारी अपनी यह, सरकार जरा कुछ शरमाए ।

पुण्य-शिखर पर चढ़ो, पाप के खंदक में न गिरो,
गो-वध बंद करो जल्दी अब, गो-वध बंद करो ।

आज यहाँ के शासक, निष्ठुर म्लेच्छ यवन क्रिस्तान नहीं
आज यहाँ पर किसी और की, सत्ता नहीं - विधान नहीं
आज यहाँ सब कुछ है अपना, पर गौ का कल्याण नहीं
गो-वध रोके कौन ! तनिक, इस ओर किसी का ध्यान नहीं ।

गो-रक्षा, गो-सेवा कर , भारत का कष्ट हरो,
गो-वध बंद करो जल्दी अब, गो-वध बंद करो ।