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गो चाक रहा इस दिल-ए-नाशाद का दामन / सरवर आलम राज़ ‘सरवर’
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गो चाक रहा इस दिल-ए-नाशाद का दामन
हाथों से नहीं छूटा तिरी याद का दामन!
इक उम्र चलाया किया वो तेशा-ए-उल्फ़त
प्यासा ही रहा हसरत-ए-फ़रहाद का दामन!
अल्लाह रे बुतख़ाना-ए-हस्ती की ख़राबी!
छूटा न कभी इस सितम-ईजाद का दामन
सुनवाई मिरी कब हुई उस बज़्म-ए-तरब में
फैलाया बहुत गिर्या-ओ-फ़रयाद का दामन!
उलझा तो किसी तरह सुलझने में न आया
दामान-ए-तसव्वुर से तिरी याद का दामन!
आज़ाद रहा हल्क़-ए-हर-दाम-ए-ख़िरद से
मैं और मिरे इश्क़-ए-ख़ुदा-दाद का दामन!
"ऐ ख़ाना-बर-अन्दाज़-ए-चमन कुछ तो इधर भी!"
है दाद-तलब कुश्त-ए-बेदाद का दामन!
"सरवर"! ये मुझे फ़ख़्र है इल्जाम-ए-ख़ुदी से
है पाक मिरी फ़ितरत-ए-आज़ाद का दामन