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गो बड़े बदज़ुबान हैं पगले / दीपक शर्मा 'दीप'
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गो बड़े बदज़ुबान हैं पगले
पर किसी की तो जान हैं पगले
तुम हमीं में उड़ान भरते हो
हम खुला आसमान हैं पगले!
फिर पलटते हो क्यों हमैं आख़िर
गर मुकम्मल बयान हैं पगले
तुम तुम्हारा ही जिस्म हो,रक्खो,
हम हमारी ही जान हैं पगले
कुछ गुनाहों के देवता थे और
कुछ गुनाहों की शान हैं पगले
हम को आँखें दिखा रहा है तू?
हम तिरा खानदान हैं पगले!
मार भी डाल बे कुचल भी दे
दीप जी बेज़ुबान हैं पगले