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गो बिला बालोपर चला हूँ मैं / कांतिमोहन 'सोज़'

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गो बिला बालोपर<ref>पँख</ref> चला हूँ मैं।
रात से तासहर<ref>सुबह तक</ref> चला हूँ मैं॥

चलते चलते मैं हो गया पत्थर
क्या कहूँ किस क़दर चला हूँ मैं।

कोई मंज़िल न हो सकी मेरी
फिर भी आठों पहर चला हूँ मैं।

तुमको मालूम हो तो बतला दो
कौन हूँ और किधर चला हूँ मैं।

कौन तकता है मेरी राह वहाँ
क्या सबब है कि घर चला हूँ मैं।

सबने उसको उदास देखा है
कारनामा-सा कर चला हूँ मैं।

राहे-उल्फ़त कि राहे-मक़्तल हो
सोज़ सीनासिपर<ref>सीना तानकर</ref> चला हूँ मैं॥

शब्दार्थ
<references/>