गौतम, तुम नेवले से बहुत छोटे रह गए / संजय तिवारी
तुमसे ढाई हजार साल पहले की कथा है
केवल त्याग है और व्यथा है
प्रतीक नेवला है लेकिन धर्म है
यहाँ त्याग का आधार केवल कर्म है
यहाँ कही पलायन नहीं है
किसी दुःख का गायन नहीं है
तुमने उदांग ऋषि का नाम नहीं सुना
त्रेता के महाराज रघु का धाम भी नहीं चुना
पड़ा था बहुत बड़ा अकाल
एक ब्राह्मण कुल का था यह हाल
बड़ी मुश्किल से घर में आया कुछ अन्न
सभी हुए प्रसन्न
रोटियां बनायीं गयी
भोजन की थालें सजाई गयीं
तभी खटखटाया किसी ने द्वार
सामने अतिथि थे
करना ही था सत्कार
अतिथि को बिठा दिया जिमाने
पूरा परिवार मिल लगा खिलाने
पूरा भोजन हो गया समाप्त
अतिथि विदा हो गए
धरती पर रह गए थे कुछ जूठे दाने
एक नेवला आकर लगा खाने
उसी पर वह लौटने लगा
खुद को घोटने लगा
आधे शरीर पर सोना बिछ गया
नेवला अर्धस्वर्ण वर्णी हो गया
युग बीता
द्वापर आया
महाराज युधिष्ठिर ने बड़ा यज्ञ करवाया
नेवला पहुंच गया यञवेदी के पास
लौटने लगा लेकर कुछ आस
पर कुछ भी नहीं बदला
रह गया आधा सोने का और आधा उजला
वह शोक में डूब गया
युधिष्ठिर ने पूछा तो वह ऊब गया
ब्राह्मण के घर का जो अन्न खाया
और लपेटा था
उसमे त्याग था? पुण्य था
युधिष्ठिर के यज्ञ की राख में सब शून्य था
तब योगेश्वर कृष्ण ने समझाया
नेवले के रूप में धर्म को बताया
आगे का समय और भी है ख़राब
मत पूछो पुण्य और त्याग का हिसाब
नहीं दे सकेगा कोई जवाब
चलते रहो समय के संग
बदलते रहेंगे जीवन के सभी रंग
त्रेता के भूखे परिवार और
द्वापर के यज्ञ का पुण्य
अब कही नहीं मिलेगा
मनुष्य अपनी जिद से नहीं हिलेगा
खंडित सनातनता
पीड़ित मानवता
को और पीड़ित करेंगे
सम्प्रदाय और पंथ
नए पंथो में तलाशेंगे दुखो का अंत
गौतम? तुम नेवले से बहुत छोटे रह गए
त्याग और पुण्य की समझ में खोटे रह गए।