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गौना / सौमित्र सक्सेना
Kavita Kosh से
जब-जब भी उड़ के जाता हूँ
ढेर सारी बरियाँ भर लेता हूँ चोंच में
रास्ते में भूख बहुत लगती है
लौटने पे वो
कुछ न कुछ
दे ही देती है साथ में
जब जब भी वहाँ जाता हूँ
साँसे भर लेता हूँ ध्वनियों से
अब कि
सब कह ही दूँगा उसको
लौटने पे
ले ही आऊँगा साथ ।