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गौरैया: एक / असंगघोष
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मैं हाथों में गांडीव ले
रूपसी द्रोपदी के लिए
प्रत्यंचा चढ़ा
घूमती मछली की
आँख बेधनेवाला
पार्थ नहीं था।
न ही
शब्दवेधी बाणों से
भौंकते श्वान का मुँह
भरनेवाला साधनारत एकलव्य
फिर मेरी गुलेल से छूटा पत्थर
तुम्हें कैसे लगा गौरैया?
तुम अब नहीं हो
कोई उत्तर भी नहीं है
मैं जानता हूं
तुम्हारे और मौत के बीच
मैं, गुलेल व पत्थर ही तो थे
मेरा मन मुझे
माफ नहीं कर रहा
मैं प्रायश्चित करना चाहता हूँ।